गिद्ध
गिद्ध
गिद्ध शिकारी पक्षियों के अंतर्गत आनेवाले मुर्दाखोर पक्षी हैं,
जिन्हें गृद्ध कुल (Family Vulturidae) में एकत्र किया गया है। ये सब पक्षी
दो भागों में बाँटे जा सकते हैं। पहले भाग में अमरीका के कॉण्डर (Condor),
किंग वल्चर (King Vulture), कैलिफोर्नियन वल्चर (Californian Vulture),
टर्की बज़र्ड (Turkey Buzzard) और अमरीकी ब्लैक वल्चर (American Black
Vulture) होते हैं और दूसरे भाग में अफ्रीका और एशिया के राजगृद्ध (King
Vulture), काला गिद्ध (Black Vulture), चमर गिद्ध (White backed Vulture),
बड़ा गिद्ध (Griffon Vulture) और गोबर गिद्ध (Scavenger Vulture) मुख्य
हैं।
ये कत्थई और काले रंग के भारी कद के पक्षी हैं, जिनकी दृष्टि बहुत तेज
होती है। शिकारी पक्षियों की तरह इनकी चोंच भी टेढ़ी और मजबूत होती है,
लेकिन इनके पंजे और नाखून उनके जैसे तेज और मजबूत नहीं होते। ये झुंडों में
रहने वाले मुर्दाखेर पक्षी हैं जिनसे कोई भी गंदी और घिनौनी चीज खाने से
नहीं बचती। ये पक्षियों के मेहतर हैं जो सफाई जैसा आवश्यक काम करके बीमारी
नहीं फैलने देते।
ये किसी ऊँचे पेड़ पर अपना भद्दा सा घोंसला बनाते हैं, जिसमें मादा एक या दो सफेद अंडे देती है।
गिद्ध परभक्षी पक्षियों के अंतर्गत आनेवाले मुर्दाखोर पक्षी हैं,
जिन्हें गृद्ध कुल (Family Vulturidae) में एकत्र किया गया है। ये सब पक्षी
दो भागों में बाँटे जा सकते हैं। एक को नई दुनिया के गिद्ध कहते हैं जो
दोनों अमरीकी महाद्वीप और उनके आस-पास के द्वीप समूहों में पाये जाते हैं।
दूसरे को पुरानी दुनिया के गिद्ध कहते हैं जो बाकी के विश्व, जैसे अफ़्रीका, यूरोप और एशिया तथा इनके आस-पास के द्वीप समूहों में पाये जाते हैं।
यह जाति आज से कुछ साल पहले अपने पूरे क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पायी
जाती थी। १९९० के दशक में इस जाति का ९७% से ९९% पतन हो गया है। इसका मूलतः
कारण पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) है जो कि पशुओं के जोड़ों के
दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और
उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको भारतीय गिद्ध खाता
है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। अब नई दवाई
मॅलॉक्सिकॅम meloxicam
आ गई है और यह हमारे गिद्धों के लिये हानिकारक भी नहीं हैं। जब इस दवाई का
उत्पादन बढ़ जायेगा तो सारे पशु-पालक इसका इस्तेमाल करेंगे और शायद हमारे
गिद्ध बच जायें।
आज भारतीय गिद्धों का प्रजनन बंदी हालत में किया जा रहा है। इसका कारण यह
है कि खुले में यह विलुप्ति की कग़ार में पहुँच गये हैं। शायद इनकी संख्या
बढ़ जाये। गिद्ध दीर्घायु होते हैं लेकिन प्रजनन में बहुत समय लगाते हैं।
गिद्ध प्रजनन में ५ वर्ष की अवस्था में आते हैं। एक बार में एक से दो अण्डे
पैदा करते हैं लेकिन अगर समय ख़राब हो तो एक ही चूज़े को खिलाते हैं। यदि
परभक्षी इनके अण्डे खा जाते हैं तो यह अगले साल तक प्रजनन नहीं करते हैं।
यही कारण है कि भारतीय गिद्ध अभी भी अपनी आबादी बढ़ा नहीं पा रहा है।
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