Posts

Showing posts from September, 2017

हंस

Image
 हंस    पक्षी प्रजातियों में से हंस को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इस सुंदर पक्षी को प्यार और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। हंस माता सरस्वती का वाहन है। हंस बतख से मिलते जुलते जलीय पक्षी हैं जो अपना ज्यादातर जीवन पानी में ही गुज़ार देते हैं। यह पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर बिता देते हैं। आम तौर पर हंस झीलों जा बड़े -बड़े तालाबों में रहते हैं। ऑस्ट्रेलिया में काले रंग के हंस पाए जाते हैं। हंस अपने जीवनकाल के दौरान एक ही साथी के साथ रहकर जिन्दगी गुजार देते हैं। हंस (Swan) ज्यादातर बीज, बेरियां और छोटे -मोटे कीड़े मकौड़े खाते हैं। हंस दुनिया के सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। संसारभर में हंसों की सात प्रजातियां पायी जाती हैं। हिन्दू धर्म में हंस को मारना अर्थात देवता जा अपने गुरु को मार देने के समान है। हंसों के बारे में एक कथा प्रचलित है के कैलाश पर्वत यहां शिव का निवास स्थान है वहां हंस मानसरोवर झील के कंडे रहते हैं और वहां मोती चुगते हैं पर वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि नहीं करते हैं।

शुतुरमुर्ग

Image
शुतुरमुर्ग            शुतुरमुर्ग की ऊंचाई 9 फीट तक होती है। वजन 155 किलोग्राम तक होता है। वह 75 साल तक जीवित रहता है। 70 किलोमीटर की रफ्तार से लगातार आधे घंटे तक दौड़ सकता है। रफ्तार के समय यह खुद को संतुलित रखने के लिए अपने 6 फीट लंबे पंख का इस्तेमाल करता है। इस कारण यह दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी कहलाता है। लंबे पैर और गर्दन वाला शुतुरमुर्ग मुख्य रूप से अफ्रीका में पाया जाता है। मेल शुतुरमुर्ग को रोस्टर और फीमेल को हेन कहते हैं।          यह मुख्य रूप से मैदानी और मरुस्थलीय क्षेत्र में रहता है। घास-फूस, छोटे पौधे, बीज, कीड़े-मकोड़े आदि इसके आहार हैं। धरती के इस सबसे बड़े पक्षी के दांत नहीं होते, इसलिए वह अपने भोजन को पचाने के लिए पेट में पत्थर के टुकड़े रखता है। इन टुकड़ों का वजन एक किलोग्राम तक हो सकता है। मेल शुतुरमुर्ग आमतौर पर काला होता है, लेकिन इसके पंख सफेद भी पाए गए हैं। फीमेल शुतुरमुर्ग और उनके बच्चों का रंग भूरा और सफेद होता है। अधिक वजन होने के कारण यह उड़ नहीं सकता। शुतुरमुर्ग काफी तेजी से बड़ा होता है। एक साल तक यह प्रति माह 10 इंच तक बढ़ता है। इसकी आंखे

चील

Image
चील      चील श्येन कुल, फैलकोनिडी , का बहुत परिचित पक्षी है, जिसकी कई जातियाँ संसार के प्राय: सभी देशों में फैली हुई हैं।    लक्षण चील लगभग दो फुट लंबी चिड़िया है, जिसकी दुम लंबी ओर दोफंकी रहती है। चील का सारा बदन कल छौंह भूरा होता है, जिस पर गहरे रंग के सेहरे से पड़े रहते हैं। चील की चोंच काली और टाँगें पीली होती हैं। बाज, बहरी आदि शिकारी चिड़ियों से इसके डैने बड़े, टाँगें छोटी और चोंच तथा पंजे कमज़ोर होते हैं। चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है। बाज़ार में खाने की चीज़ों पर बिना किसी से टकराए हुए, यह ऐसी सफाई से झपट्टा मारती है कि देखकर ताज्जुब होता है। भोजन यह सर्वभक्षी तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह इतनी होती है कि कभी-कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना लेती है। मादा दो तीन सफ़ेद या राखी के रंग के अंडे देती है, जिन पर कत्थई चित्तियाँ पड़ी रहती हैं। मुख्य प्रजातियाँ काली चील ब्रह्मनी या खैरी चील ऑल बिल्ड चील ह्विसलिंग चील

तीतर

Image
 तीतर                  तीतर मुख्य रूप से प्राचीन समय का पक्षी है विश्व में तीतर की 40 से भी ज्यादा प्रजातियां पायी जाती है। तीतर हरे -भरे इलाके और झाड़ियों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। तीतर को घने जंगलों और और सूखे मैदानों में कभी नहीं देखा जाता है। यह पक्षी उड़ता बहुत कम है और जब कभी उड़ता भी है तो इसकी उड़ान काफी नीची और बहुत छोटी होती है।            तीतर झुंडों में रहने की वजाय अकेले रहना पसंद करते हैं। तीतर घनी झाड़ियों अथवा घास के मैदानों और वृक्षों की शाखाओं पर विश्राम करते हैं। तीतर की सभी प्रजातियों की शारीरक सरंचना , आकार , रंग भोजन आदि से सबंधित आदतों और व्यवहारों में प्राप्त अंतर होता है। तीतर का शरीर गोलाई के रूप में इसका सिर छोटा इसकी पूंछ भी बहुत छोटी एवं नुकीले पंजे होते हैं। काला तीतर भारत के इलावा पाकिस्तान , नेपाल , भूटान और ईरान में  भी पाया जाता है।               नर तीतर और मादा तीतर के शारीरक रंगों में थोड़ा अंतर होता है नर के शरीर का रंग चमकीला जबकि मादा के शरीर का रंग हल्का होता है। तीतर की कुछ प्रजातियां तो रंग -बिरंगे रंगों में होती हैं तथा

किंगफिशर

Image
किंगफिशर                                                       वैसे तो भारत में नौ प्रकार के किंगफिशर पाए जाते हैं पर मैं आपका आस-पास और अकसर दिख जाने वाले किंगफिशर्स के बारे में बताना चा हूँ गा । एक है स्मॉल ब्लू किंगफिशर और दूसरा वाईट ब्रेस्टेड किंगफिशर । स्मॉल ब्लू किंगफिशर -            इसका आकार लगभग गौरेया जितना होता है । यह नीले-हरे रंग का होता है मगर इसका सामने धड वाला भाग हल्का भूरा होता है । सीधी मजबूत नुकीली चोंच के साथ किंगफिशर के लिये मछली पकडना आसान होता है । इसकी छोटी सी पूंछ होती है । इनमें नर और मादा के फीचर्स लगभग समान होते हैं । अकसर यह अकेला रहना पसंद करता है । इसे आप पानी के स्त्रोतों के पास देख सकते हो , नदि याँ, पोखर , पानी भरे गढे , तालाबों आदि के आस-पास के पेडों क़ी डालों या तारों पर

गिद्ध

Image
  गिद्ध           गिद्ध शिकारी पक्षियों के अंतर्गत आनेवाले मुर्दाखोर पक्षी हैं, जिन्हें गृद्ध कुल (Family Vulturidae) में एकत्र किया गया है। ये सब पक्षी दो भागों में बाँटे जा सकते हैं। पहले भाग में अमरीका के कॉण्डर (Condor), किंग वल्चर (King Vulture), कैलिफोर्नियन वल्चर (Californian Vulture), टर्की बज़र्ड (Turkey Buzzard) और अमरीकी ब्लैक वल्चर (American Black Vulture) होते हैं और दूसरे भाग में अफ्रीका और एशिया के राजगृद्ध (King Vulture), काला गिद्ध (Black Vulture), चमर गिद्ध (White backed Vulture), बड़ा गिद्ध (Griffon Vulture) और गोबर गिद्ध (Scavenger Vulture) मुख्य हैं।        ये कत्थई और काले रंग के भारी कद के पक्षी हैं, जिनकी दृष्टि बहुत तेज होती है। शिकारी पक्षियों की तरह इनकी चोंच भी टेढ़ी और मजबूत होती है, लेकिन इनके पंजे और नाखून उनके जैसे तेज और मजबूत नहीं होते। ये झुंडों में रहने वाले मुर्दाखेर पक्षी हैं जिनसे कोई भी गंदी और घिनौनी चीज खाने से नहीं बचती। ये पक्षियों के मेहतर हैं जो सफाई जैसा आवश्यक काम करके बीमारी नहीं फैलने देते। ये किसी ऊँचे पेड़ पर

बतख

Image
 बतख        बतख (Duck) हंसों की प्रजातियों में से हैं छोटा पक्षी है। बतख एक जलीय पक्षी हैं क्योंकि यह अपना पूरा जीवन पानी में ही बिता देता है। एक बतख 8 से 10 साल तक जीवित रहती है। बतख के पंख जलरोधक होते हैं जो पानी में भी गीले नहीं होते है। बतख हर साल तकरीवन 250 अंडे देती है। बतख के पंख छोटे और नुकीले होते हैं। बतख समुन्द्रों में रहकर एक दिन में कई मीलों का सफ़र तय कर सकती है। बतख सर्वाहारी होती हैं जो जलीय पौधे , कीड़े -मकौड़े , मछलियां खाती हैं। बतखों की लगभग 40 प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनमे से वाइट पीकिन सबसे प्रसिद्ध है। बतख अपने अण्डों पर बैठकर अपने शरीर की गर्मी से बच्चों को जन्म देती है बतख के चूजे 28 दिनों में अण्डों से बाहर आ जाते हैं। नर बतख मादा बतख को प्रजनन के लिए तैयार करने के लिए अपने पंखों को फैलाता है। बतख की तीन पलकें होती हैं।       बतख ऐनाटीडे प्रजातियों के पक्षियों का एक आम नाम है जिसमे कलहंस और हंस भी शामिल है। बतख कई अन्य सह प्रजातियों व परिवारों में बाटी हुई है पर फिर भी यह मोनोफेलटिक (एक आम पैतृक प्रजातियों के सभी सन्तान के समूह)

तोता

Image
  तोता   बच्चों पहचानते हो न इस पक्षी को , बहुत प्रिय है न ये पक्षी आपको । इस पर कितने गीत कितनी कविताएं बचपन से ही गुनगुनाई होंगी । तोता! हाँ ये तो उसका प्रचलित नाम है लेकिन इसका अंग्रेजी नाम  रोज रिंग्ड पेराकीट है और वैज्ञानिक नाम  सिटाक्यूला क्रेमरी  है । पूरे विश्व में कई प्रकार के विभिन्न रंगों के तोते मिलते हैं , खास तौर पर अफ्रीका में । भारत में भी 6-7 किस्म के तोते पाए जाते हैं । पर हम आस-पास की बात कर रहे हैं । हमारे आस-पास आमतौर पर दिखने वाले तोतों में रोज रिंग्ड पेराकीट आसानी से मिल जाता है । य हाँ तक कि हर सुबह - शाम ये आस-पास के पे डों पर शोर मचाते , मस्ती करते दिख जाते हैं । इसका आकार आप जानते ही हो , रंग और आकृति भी ।

मुर्गी

Image
 मुर्गी         मुर्गी का सबंध पक्षी (Bird) जाती है यह ज्यादातर घरों में पाला जाने वाला पक्षी है। मुर्गी (Hen) दुसरे पक्षियों से बड़ी होती है। मुर्गियों का रंग लाल , भूरा तथा सफ़ेद होता है। मुर्गी के दो टांगे होती है। इसके सर पर एक लाल रंग की कलगी होती है। अंग्रेजी में मुर्गी को हेन और मुर्गे को कॉक कहते हैं। लोग मुर्गियों को अंडे तथा मीट के लिए पालते हैं। मुर्गा मुर्गी से बड़ा होता है और इसका रंग भी मुर्गी से अधिक चमकदार होता है। पुराने समयों से ही मुर्गा -मुर्गी का सबंध मनुष्य के साथ रहा है ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में ही इन्हें पाला जाता है। रोज़ाना मुर्गी (Hen) एक जा दो अंडे देती है मुर्गी का अंडा स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना गया है क्योंकि अंडे में अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है।         मुर्गी (Hen) हल्की से ही आवाज़ से डर जाती हैं। मुर्गी अंडा देने के लिए ख़ास जगह चुनती है और रोज़ाना उसी जगह अंडा देती है। एक मुर्गी हर वर्ष लगभग 300 अंडे देती है। मुर्गी अंडों पर बैठकर अपने शरीर की गर्मी से बच्चों को जन्म देती है। मुर्गी के बच्चों को चूजे कहा जाता है। मुर्गी

कबूतर

Image
कबूतर     कबूतर एक शांत स्वभाव वाला पक्षी है। कबूतर सभी स्थानों पर भिन्न-भिन्न आकृति वाले होते हैं। कोलंबिडी कुल (गण कोलंबीफॉर्मीज़) की कई सौ प्रजातियों के पक्षियों में से एक छोटे आकार वाले पक्षियों को फ़ाख्ता या कपोत और बड़े को कबूतर कहते हैं। इसका एक अपवाद सफ़ेद घरेलू कबूतर है, जिसे 'शांति कपोत' कहते हैं। कबूतर ठंडे इलाक़ों और दूरदराज़ के द्वीपों को छोड़कर लगभग पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। इतिहास कबूतरों को पालतू बनाए जाने का सबसे पुराना उल्लेख मिस्र के पांचवे राजवंश (लगभग 300 ई.पू) से मिलता है। 1150 ई. में बग़दाद के सुल्तान ने कबूतरों की डाक व्यवस्था शुरू की थी और चंगेज़ ख़ां ने अपने विजय अभियानों के विस्तार के साथ ऐसी ही प्रणाली का उपयोग किया था। 1848 की क्रांति के दौरान यूरोप में संदेश वाहक के रुप में कबूतरों का व्यापक इस्तेमाल हुआ था और 1849 में बर्लिन व ब्रूसेल्स के बीच टेलीग्राफ़ सेवा भंग होने पर कबूतरों को ही संदेश वाहक रुप में प्रयुक्त किया गया था। 20 वीं शताब्दी में भी युद्धों के दौरान कबूतरों को आपात संदेश ले जाने के लिए इस्तेमाल क

मोर

Image
  मोर     मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। रूप और गुण दोनों में मोर अतुलनीय है। मोर बहुत सुन्दर होता है। इसके पंखों में इन्द्रधनुषी रंग बिखरे हुए हैं। बरसात के मौसम में बादलों को देखकर पक्षी राज मोर झूम उठता है। अपने पंखों को फैलाकर जब यह नाचता है तो मोरनी के साथ साथ सभी इसके नृत्य के दीवाने हो जाते हैं। मोर की ऊंचाई लगभग डेढ़ दो फुट होती है मगर इसका शरीर कुछ बड़ा होता है। वास्तव में अपने लम्बे लम्बे पंखों के कारण यह काफी लम्बा लगता है। नाचते वक्त यह अपने पंख गोल घेरे में ऊपर उठा कर फैला लेता है। मोर के सिर पर एक चमकीली रंग बिरंगी कलगी होती है। इसकी चोंच थोड़ी लम्बी और नुकीली होती है। मोर के पैर उसकी तरह सुन्दर नहीं होते। किस्से कहानियों में कहा जाता है हि मोर अपने पैरों को देखकर रोता है। मोरनी मोर की तरह सुन्दर नहीं होती, क्योंकि उसके पंख मोर जैसे सुन्दर नहीं होते।     मोर हरे भरे जंगलों और खेतों के पास ही रहते हैं। मोर का प्रिय भोजन है कीट पतंग और अनाज के दाने। मोर सांप को भी मार कर खा जाता है।    हमारे देश में मोर को पवित्र माना जाता है। भगवान कृष्ण अपने मुकुट में मोरपंख

कोयल

Image
कोयल         कोयल कुकू (Cuckoo) कुल का सुप्रसिद्ध पक्षी कोकिल; मीठी बोली बोलनेवाली भारतीय पक्षियों में इसका विशेष स्थान है। कोयल का नर कौए जैसा गहरा काला और मादा भूरी चितली होती है। कोयल सर्वथा भारतीय पक्षी है; यह इस देश के बाहर नहीं जाती, थोड़ा बहुत स्थानपरिवर्तन करके यहीं रहती है। कोयल शाखाशायी पक्षी है, जो जमीन पर बहुत कम उतरती है। इसके जोड़े सुविधा के अनुसार अपनी सीमा बना लेते हैं और एक दूसरे के अधिकृत स्थान का अतिक्रमण नहीं करते। प्रति वर्ष वे अपने निश्चित स्थान पर ही आते हैं और कुछ समय बिताकर फिर अपने देश लौट जाते हैं।     कुकू कुल के सभी पक्षी दूसरी चिड़ियों के घोसलें में अपना अंडा देने की आदत के लिये प्रसिद्ध हैं। उनकी इस विचित्र आदत को लोग बहुत समय से जानते थे, किंतु इसका यथेष्ट रहस्योद्घाटन पिछले 50 वर्षों में ही हो सका है।       अन्य पक्षियों की भाँति अंडा देने का समय निकट आने पर कुकू वर्ग के पक्षी घोंसला बनाने की चिंता नहीं करते। वे कौए, पोदना और चरखी आदि के घोंसले में अपना एक अंडा देकर, उसका एक अंडा अपनी चोंच में भरकर लौट आते हैं और किसी पेड़ पर बैठकर उसे चट